चारधाम यात्रा शुरू होने के बाद हेलीकाप्टर दुर्घटना का पांचवा बड़ा हादसा होने के बाद अब देहरादून मे एअर ट्रैफिक कंट्रोल का निर्णय हुआ है जो देर से लिया गया सही निर्णय है, लेकिन रविवार को केदारनाथ हादसे ने हेली सेवाओं पर प्रश्न चिन्ह तो खड़ा कर ही दिया, इस हादसे के वाद सरकार के स्तर से सख्त सन्देश देने के लिए जिस प्रकार से ताबड़तोड़ फैसले लिए जा रहे इससे ऐसा लग रहा है कि सरकारें भी हादसों के ही इंतजार मे रहती है।
चारधाम यात्रा शुरू होने के बाद 8मई से 15जून के बीच पांच हेली हादसे हो चुके हैं, 8मई को उत्तरकाशी के गंगनानी मे हेलीकाप्टर दुर्घटना ग्रस्त हुआ और 6 तीर्थयात्रियों की दर्दनाक मौत हुई, रविवार को केदारनाथ हादसे के बाद हेली सेवाओं के संचालन के लिए जिस प्रकार के निर्णय लिए जा रहे हैं यदि 8मई को उत्तरकाशी की घटना के बाद ये निर्णय ले लिए जाते तो क्या सात लोगों की जान बचाई जा सकती थी ? यह सवाल आम जनमानस के मन मे तैर रहा है।
केदारनाथ हादसे के बाद पहला निर्णय कॉमन कमांड सेंटर बनाने का हुआ है तो क्या उत्तराखंड मे हेली सेवाओं को शुरू करने से पहले कॉमन कमांड सेंटर नहीं बनना चाहिए था ?. दूसरा निर्णय हुआ है कि अब हिमालय मे उड़ान के लिए अनुभवी पायलटों को ही इजाजत दी जाएगी तो क्या अब तक उच्च हिमालय मे उड़ान भर रहे अनुभवी पायलट नहीं थे ?.तीसरा निर्णय सख्त एसओपी लागू करने का भी हुआ है तो उत्तराखंड मे क्या हेलीकाप्टर बिना किसी एसओपी के ही संचालित हो रहे थे ? यह सब प्रश्न हेलीकाप्टर हादसों मे अपनों को खो चुके परिवार तो पूछेंगे ही, केदारनाथ हादसे के बाद लिए जा रहे निर्णयों पर उत्तराखंड सहित देशभर के लोग नजर रखे हुए हैं।
यह भी सच है कि हादसा कभी भी किसी के साथ हो सकता है, लेकिन हादसे के तुरन्त बाद जिस प्रकार से सुरक्षात्मक निर्णय लिए जाते है इससे लोगों के मन मे सवाल उठना लाजिमी है कि यदि इस प्रकार के निर्णयों से हादसे कम या रोके जा सकते हैं तो यह हादसों से पहले क्यों नहीं लिए जाते ?.।
केदारनाथ हादसे के बाद एक महत्वपूर्ण निर्णय एटीसी -एअर ट्रैफिक कंट्रोल का हुआ है जो अब तक नहीं था, एटीसी का मतलब ही वायु यातायात नियंत्रण है, एटीसी ही वायु यातायात के सुरक्षित एवं व्यवस्थित करने का प्रबंधन करती है। ऐसा सुरक्षित प्रबंधन भी हेली सेवाओं को शुरू करने से पूर्व नहीं किया गया।
किसी भी राज्य अथवा केन्द्र सरकार की पहली जिम्मेदारी अपने नागरिकों की सुरक्षा करना है और नागरिकों की सुरक्षा के लिए हादसों व मौतों का इंतजार किए बिना जो भी बड़े निर्णय लिए जाने हो वह किसी भी योजना को शुरू करने से पहले ले लिए जाने चाहिए।
उत्तराखंड मे चारधाम यात्रा ही राज्य की आर्थिकी की रीढ़ है, हर वर्ष शीतकाल मे चारों धामों के कपाट बन्द होने के बाद से ही आगामी यात्रा सीजन की तैयारियों को लेकर बैठकों का दौर शुरू हो जाता है, वसंत पंचमी आते आते दर्जनों बैठकें कई स्तर पर हो जाती है, कपाट खुलने से ठीक पहले चाक चौबंद व्यवस्था का दावा भी कर दिया जाता है और कपाट खुलने के बाद हादसों की शुरुवात हो जाती है।
उत्तरकाशी एवं केदारनाथ जैसे हादसों की पुनरावृति न हो इसके लिए राज्य सरकार कठोर निर्णय की ओर बढ़ रही है, उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार के स्तर से लिए जाने वाले निर्णयों का कड़ाई से पालन हो और जीवन मे एक बार चारधाम यात्रा पूर्ण करने की कामना लेकर आ रहे श्रद्धालु सकुशल अपनों के बीच पहुँच सके।
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