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श्री बद्रीनाथ धाम मे नर -नारायण जयंती की परंपरा

---------  प्रकाश कपरुवाण।
 श्री बद्रीनाथ धाम।
 भू बैकुंठ धाम श्री बद्रीनाथ धाम मे नर- नारायण जयंती का अपना अलग ही धार्मिक महत्व है। यहां प्रति वर्ष श्रावण मास मे नर- नारायण जयंती पर्व को धूम -धाम से मनाने की धार्मिक परंपरा है।
    नर और नारायण सतयुग के अवतार हैं, जो धर्म के अंश से मूर्ति देवी "माता मूर्ति "से प्रगट हुए, नर और नारायण के माता -पिता धर्म देव एवं मूर्ति देवी हैं।
 
   भगवान नर नारायण जब तपस्या के लिए बद्रीकाश्रम क्षेत्र मे आए तो इनके साथ माता पिता भी बद्रीकाश्रम पहुँच गए थे तब माता मूर्ति देवी  माणा "मणि भद्र पूरी" मे केशव प्रयाग के सामने तपस्या करने लगी जबकि पिता धर्म का सरस्वती व अलकनंदा के बीच धर्म क्षेत्र मे तपस्या करने का उल्लेख है।
 शास्त्रों के अनुसार ---
"कर्कटे हस्त नक्षत्रे, बदरीनिलयोभवम।
"अष्टाक्षर प्रदातारम, नारायणमहं भजे।।
अर्थात कर्क के सूर्य मे दैनिक हस्त नक्षत्र आने पर भगवान नर नारायण का जन्म होना बताया गया है -"अवतार बोध ग्रन्थ "। मान्यता है भगवान नर नारायण बद्रीकाश्रम क्षेत्र मे आज भी तपस्यारत हैं।
 
बद्रीनाथ धाम मे आयोजित नर- नारायण जयंती की परम्परा के अनुसार प्रथम दिवस भगवान नर -नारायण के चल विग्रह अपनी माता का आशीर्वाद लेने माता मूर्ति मंदिर माणा पहुँचते है जबकि दूसरे दिवस लीला ढूँगी बामणी मे पूजा अर्चना कर नगर भ्रमण के उपरांत भगवान नर -नारायण के चल विग्रह को श्री बद्रीनाथ मंदिर परिसर मे सुसज्जित किया जाता है।
    श्री बद्रीनाथ धाम के निवर्तमान धर्माधिकारी आचार्य भुवन चन्द्र उनियाल के अनुसार बद्रीनाथ धाम मे अनवरत नर नारायण जयंती का आयोजन होता रहा है, पूर्व वर्षो मे जब नर एवं नारायण के श्री विग्रह नहीं थे तब भी जयंती कार्यक्रम आयोजित होते थे और धर्म ध्वजा के साथ परिक्रमा एवं धार्मिक आयोजन किए जाते थे, नब्बे के दशक मे अष्टाक्षरी आश्रम के प्रमुख चिन्ना जियर स्वामी ने नर -नारायण के विग्रह श्री बद्रीनाथ मंदिर को समर्पित किए तब से विग्रह के साथ जयंती उत्सव मनाया जाता है।

   

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